राग :- बिहाग

राग :- बिहाग 
आरोह :-  नि. सा  ग ,  म  प ,  नि  सां
अवरोह :- सां  नि , ध  प ,  मे  प  ग  म  ग ,  रे  सा
पकड़ :-  नि.  सा  ग  म  प ,  मे  प  ग  म  ग , रे  सा






आलाप 8 मात्रा 

  1. नि.  सा  _  _  |  ग  _  रे  सा  
  2. नि.  सा  ग  म  |  ग  _  रे  सा  
  3. प  _  ग  म  |  ग  _  रे  सा  
  4. नि.सा   गम  प  _  |  ग  म  ग  _  

आलाप  16 मात्रा

  1. नि.  सा  _  _  |  ग  म  ग  _   |  प  मे  ग म  |   ग  _ रे  सा  
  2. प  _  मे  प  |  ग  म  ग  _  |  नि  सा  ग  म   | ग  _  रे  सा  
  3. ग  म  प  नि  |  _  नि  ध  प  |  ग  म  प  नि  |  प  नि  सां  _
  4. प  नि  सां  _  |  नि  ध  प  _  |  मे  प  ग  म  |  ग  _  रे  सा  

तान 8 मात्रा 

  1. नि.सा  गम  पनि  सांरें  |  सांनि  धप  मग  रेसा  
  2. गम  पनि  सांगं  रेंसां  |  निध  पम  गरे  सा_ 
  3. पम  गम  ग_  रेसा  |  नि.सा  गम  पनि  सा_
  4. पनि  सांनि  धप  मप  |  गम  पम  गरे  सा_
  5. गम  पम  पनि  पनि  |  सांनि  धप  मग  रेसा   

तान  16  मात्रा 

  1. नि.सा   गम  पम  गम  |  ग_  रेसा  नि.सा  गम  |  पनि  सांरें  सांनि  धप  |  मप  गम  गरे  सा_
  2. मग  रेसा  नि.सा  गम  |  पप  मग  रेसा  नि.सा  |  निनि  धप  मप  गम  |  पम  गम  गरे  सा_
  3. प_  गम  ग_  रेसा  |  नि_  धप  गम  ग_  |  रेंसां  गं_  रेंसां  निध  |  पम  गम  ग_  रेसा
  4. गम  पनि  पनि  सांगं  |  रेंसां  निध  पम  गम  |  पनि  सांरें  सांनी  धप  |  मप  गम  गरे  सा_
  5. पनि  सांरें  सांगं  मंगं  |  रेंसां  निध  पम  गम  |  पनि  पनि  सांनि  धप  |  मप  गम  गरे सा_       

राग का विवरण :- 

इस राग की रचना बिलावल थाट से मानी जाती है | इसके आरोह में ऋषभ स्वर और धैवत स्वर वर्ज्य है और अवरोह मे सातो स्वर प्रयोग किये जाते हैं । इसलिये इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण  है | वादी स्वर गांधार और सम्वादी स्वर निषाद माना जाता है | रात्रि के प्रथम प्रहार में इसे गाते बजाते हैं ।  कभी कभी तीव्र मध्यमा और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं ।

थाट :- बिलावल
वर्ज्य स्वर :-  रे  और  ध ( आरोह मे )
राग की जाती :- औडव - सम्पूर्ण  
वादी स्वर :- 
संवादी स्वर :-  नि
गायन का समय :-  रात्रि के प्रथम प्रहार

 
विशेषता :-

  1.  इसकी चलन मन्द्र नि से प्रारम्भ की जाती है जैसे :- नि. सा ग, रेसा ।
  2.  रे ध स्वर आरोह में तो वर्ज्य हैं हीं, किन्तु अवरोह में भी इनका अल्प प्रयोग होता है । आदिकतर इन्हें कण के रूप मे प्रयोग करते हैं, जैसे :- सां नि s धप, ध प ग म ग s रेसा ।
  3. राग की सुन्दरता बढ़ाने के लिए कभी-कभी अवरोह में तीव्र म का प्रयोग प के साथ विवादी स्वर की तरह किया जाता है, जैसे :- प मे ग म ग, रेसा। आजकल तीव्र म का प्रयोग अधिक बढ़ गया है की इसे राग का आवश्यक स्वर माना जाने लगा है ।  कुछ गायक बिहाग में तीव्र म का प्रयोग बिलकुल नहीं करते और उसे शुद्ध बिहाग कहते हैं ।
  4. प्रचार में तीव्र म का प्रयोग आदिक होने से कुछ संगीतज्ञ इसे कल्याण थाट का राग मानने लगे हैं । प्रचीन ग्रंथों में इसे बिलावल थाट का राग माना गया है।
  5. यह गम्भीर प्रकृति का राग है। इसमें विलम्बित ख्याल, द्र्त ख्याल तथा तराना गाया जाता है।
  6. इसकी चलन मन्द्र, मध्य तथा तार तीनों सप्तकों में समान रूप से होती है।


न्यास के स्वर  :- सा,,  और नि
मिलते-जुलते राग :-  यमन कल्याण
बिहाग :- नि धप, मे प ग म ग, रेसा ।
यमन कल्याण :- नि ध प, प मे ग म ग रे, नि. रे सा ।  

 प्रारम्भिक आलाप 
  1. सा, नि. सा ग s रे सा, नि. सा ग म प, प मे ग म ग रे सा नि. प. नि. सा।
  2.  नि. सा ग, म ग, प मे ग म ग, सा ग म प, ध प ग म ग, ग म प s ग म  ग s रेसा, नि. सा ग s रेसा, नि. S प. नि. सा।
  3.  ग म प, ग म प नि s धप, नि s ध प, मे प ग म प s ग म प नि s ध प, ध प मे प ग म ग s म प नि, नि s ध प, ग म ग, सा ग म प s ध प ग म ग s रेसा, नि. सा ग s रेसा।
  4.  ग म प नि s प नि सां, प नि सां गं s रें सां नि, प नि ध सां नि, प नि (सां) नि, रें सां नि s ध प, ग म ग s () ग म ग s रे सा।  

























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